Pages

Saturday, May 5, 2012

हास्य-ध्यान


‘जब तुम वास्तव में हंसते हो तो अचानक मन विलीन हो जाता है। जहां तक मैं जानता हूं, नाचना और हंसना सर्वोत्तम, स्वाभाविक व सुगम द्वार हैं। यदि सच में ही तुम नाचो, तो सोच-विचार रुक जाता है। तुम नाचते हो, घूमते जाते हो, और एक भंवर बन जाते हो--सब सीमाएं, सब विभाजन समाप्त हो जाते हैं’’
-ओशो
  • एक चोर पर मुकदमा चला। तीसरी बार मुकदमा चला। और मजिस्ट्रेट ने उससे पूछा कि तुम तीसरी बार पकड़े गए हो। दो बार भी तुम्हारे खिलाफ कोई गवाही नहीं मिल सकी, कोई चश्मदीद गवाह नहीं मिला, जिसने तुम्हें चोरी करते देखा हो। अब तुम तीसरी दफे भी पकड़े गए हो, लेकिन कोई गवाह नहीं है। तुम क्या अकेले ही चोरी करते हो? कोई साझीदार, कोई पार्टनर नहीं रखते?
    उस चोर ने कहा कि दुनिया इतनी बेईमान हो गई कि किसी से साझेदारी करना ठीक नहीं है।
  • प्रेमी--‘‘जब मैं सुबह उठता हूं तो मुझे सबसे पहले तुम्हारा ध्यान आता है’’
    प्रेमिका--‘‘राजेश भी यही कहता है।’’
    प्रेमी--‘‘तो क्या हुआ। मैं राजेश से जल्दी उठता हूं।’’
  • एक बार एक देहाती अमीर अपनी मोटर पर कहीं जा रहा था। सहसा रास्ते में मोटर रुकी। अमीर ने अपने ड्राइवर से कहा--‘‘ऐ, मोटर क्यों रुक गई?’’
    ड्राइवर ने सहमते-सहमते कहा-‘‘हुजूर, सामने एक पेड़ आ गया था।’’
    अमीर बोला--‘‘वह सामने आया ही क्यों? तुम बड़े अनाड़ी हो, भोंपू क्यों नहीं बजाया?’’
  • ‘‘तुम अपनी मांग में हरे रंग का सिंदूर क्यों लगाती हो...विवाहित स्त्रियां तो अपनी मांग लाल सिंदूर से भरती हैं।’’
    ‘‘मेरे पति रेलवे में इंजन ड्राइवर हैं...जब मैं लाल सिंदूर लगाती हूं तो वह मुझे देखकर रुक जाते हैं। इसलिए मैं हरा सिंदूर लगाती हूं ताकि वह मुझे देखकर आगे बढ़ जाएं।’’
  • पिछली बार तुम्हें दो माह की सजा मिली थी इसी अदालत से?’’
    ‘‘हां सरकार।’’
    ‘‘इस बार तुमको छोड़ रहा हूं। गवाहों की कमजोरी से बच गए। इतना सूद लेना जुर्म है, समझे।’’
    ‘‘हुजूर, आठ दिन के लिए भेज ही दीजिए’’।
    ‘‘क्यों?’’
    ‘‘ कैदियों पर मेरा पैसा उधार है। वसूल करना है।’’ वह विनती से बोला।
  • एक साहब की ससुराल गांव में थी। एक बार वह अपनी ससुराल पहुंचे और उन्होंने अपने साले साहब को एक बढ़िया इत्र की शीशी भेंट की। साले साहब ने इत्र अपनी हथेली पर डाला और चाट गये। बहनोई साहब को इस बात पर बड़ा गुस्सा आया। उन्होंने अपनी सास से इस बात की शिकायत की। शिकायत सुनकर सासुजी बोली--‘‘एक नबंर का गधा है। अरे! जब घर में रोटी थी तो रोटी में लगाकर खाता।’’
  • मरीज, डॉक्टर से: मैं रोज पचास रुपये की दवाइयां ले रहा हूं, पर कोई फायदा नहीं हो रहा।
    डॉक्टर: अब तुम मुझसे चालीस रुपये वाली दवाइयां ले जाओ। इससे तुम्हें रोज दस रुपये का फायदा होगा!!!

No comments:

Post a Comment