Pages

Tuesday, February 21, 2012

शिवताण्डवस्तोत्रम् - (श्री रावण कृतम्)


जटाटवीगल्लज्जलप्रवाहपावितस्थले 
गलेवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम् ।
डमडडमडडमडडमन्निनादवडडमर्वयं
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ।।

जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी –
विलोविलीचिवल्लरीविराज-मानमूद्धनी ।
धगद्धगद्धगज्ज्वल्लललाटपट्टपावके
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम् ।।

धराधरेन्द्रनन्दिनीविलासबन्धुबन्धुर –
स्फुरदिगन्तसन्ततिप्रमोद-मानमानसे ।
कृपाकटाक्षधोरिणीनिरूद्धदुर्धरापदि
क्कचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ।।

जटाभुजंगपिंगलत्फुरत्फणामणिप्रभा –
कदम्बकुड्कुमद्रप्रलिप्तदिग्वधूमुखे ।
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदमद्भुतं बिभूर्त भूतभर्तरि ।।

सहस्रलोचनप्रभुत्यशेषलेखशेखर –
प्रसूनधोलिधोरिणीविधूसराड्घ्रिपीठभूः ।
भुजंगराजमालया निबद्धजाटजूटकः
श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः ।।

ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिंगभा –
निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम् ।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं
महाकपालि सम्पदे शिरो जटालमस्तु नः ।।

करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल –
द्धनञ्जयाहूताकृतप्रचण्ड – पञ्चसायके ।
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक –
प्रकल्पनैकशिल्कनी त्रलोचने रतिर्मम ।।

नवीनमेघमण्डलीनिरुद्धदुर्धस्फुर –
त्कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः ।
निलीम्पनिर्झरीधरस्तुनोतु कृत्तिसिन्धुरः
कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगन्द्धुरन्धरः ।।

प्रफुल्लनीळपंकजप्रपञ्चकालिमप्रभा –
वलम्बिकण्ठकन्दलीरूचि – प्रबन्धकन्धरम् ।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदान्धकच्छिदं तमकच्छिदं भजे ।।

अखर्वसर्वमङ्ळाकलाकदम्बमञ्जरी –
रसप्रवाहमाधुरीविजृम्भणामधुव्रतम् ।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मवान्तकं
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे ।।

जयत्वद्रभविभ्रमभ्रमद्भुजंङ्गमश्वस –
द्विनिगर्ममत्क्रमस्फुरत्कराल- भालहव्यवाट् ।
धिमिद्धिमिद्धिमिदध्वनन्मृदंङगतुंङ्गमंङ्ळ –
ध्वनि-क्रमप्रवर्तितेप्रचण्डताण्वः शिवः ।।

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजो –
र्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुह्रपक्षपक्षयोः ।
तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समप्रवृत्तिकः कदा सदाशिवम् भजाम्यहम ।।

कदानिलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन् –
विमुक्तिदुर्मतिः सदा शिरः स्थमञ्जलिं वहन् ।
विलोललोललोचनो ललामभाललग्रकः
शिवेतिमन्त्रमुञ्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ।।

इमं हि नित्यमेवमुक्तमुक्तमोत्तमं स्तवं –
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेति सन्ततम् ।
हरे गुरो सुभक्ति माशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशंकरस्य चिंतनम् ।।

पूजावसान समये दशवक्त्रगीतम् –
यः शम्भू पूजनपरं पठेति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्युक्तां –
लक्ष्मीं सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ।।

No comments:

Post a Comment